मेरी अपनी माँ- समाज दर्पण

सूचना: यह कोई सेक्स कहानी नहीं है, यह कहानी जन चेतना के लिए है.
जो पाठक शुद्ध सेक्स पढ़ना चाहते हैं, यह कृति उनके लिए नहीं हैं.

लम्बी सांस लेते हुये सुचेता ने मन ही मन सोचा कि आज सासू माँ की तेरहवीं की क्रिया भी निबट गयी.

मेरी जन्म की माँ ने तो केवल बाईस साल तक मुझे सम्भाल कर रखा, सहारा दिया.
पर मेरी सासू माँ ने तो मरते दम तक मेरे सम्मान, मेरी गरिमा और सबसे बढ़कर मेरी इस देह की पवित्रता की रक्षा की.

ससुराल में आते ही जब ससुर के पांव छूने के लिए झुकी तब आशीर्वाद देते हुए सिर पर से सरकता हुआ उनका हाथ पीछे पीठ पर पहुँचते ही सासू माँ ने टोका था उन्हें- अपनी बिटिया ही समझो … बहू नहीं, हम बेटी ही घर लाये हैं!

सासू माँ की कड़क चेतावनी सुनते ही ही ससुर जी का खिसियाया हुआ सा चेहरा दिख गया था मुझे घूंघट में से!

उस दिन के बाद से जब भी ससुर जी के पांव छुए तो दूर से ही आशीर्वाद मिलता रहा मुझे!

पतिदेव के परिवार के दूर के रिश्ते में एक बड़े भैया जब अपने किसी काम से कुछ दिन के लिए हमारे घर आकर रुके थे, तब मेरी गोद में एक नन्हा मुन्ना था, एक बेटे की माँ बन चुकी थी थी मैं!

पर उस पापी पुरुष की कुदृष्टि मेरे पूरे तन पर ही सरकती रहती.

एक दिन आखिर चाय का कप पकड़ाते समय मेरी मेरी उँगलियों को छूने का कुप्रयास करते सासू माँ ने उस पापी को देख ही लिया.
तो मेरी सासू माँ ने आगे आकर चाय का कप उससे लेते हुए कहा था- लल्ला, अब चाय खुद के घर जाकर ही पीना! मेरी बहू सीता है, द्रौपदी नहीं … जिसे भाई आपस में बाँट लें.

सासू माँ की फटकार सुन वो अधम नर अपना सामान बांधकर ऐसा भागा कि उसके बाद मेरे ससुर जी की तेरहवी तक में नहीं आया और न ही अब सासू माँ की तेरहवीं पर!

मेरी चचेरी ननद का किडनी स्टोन की सर्जरी हुई तो मुझे उनकी देखभाल के लिए उनके ससुराल जाकर रहना पड़ा था 15-20 दिन.

तब भी मुझे अच्छे से याद है कि वहाँ सासू माँ के निर्देश कान में गूंजते रहे- बहू, वहां खुद को सबसे बचा कर रहना … यों तो तेरा ननदोईया समझदार और शांत स्वभाव वाला है. पर है तो वह एक मर्द ना … ऊपर से उनके अब तक कोई बाल-बच्चा नहीं है.

अपने अंतिम समय पर जब मेरी सासू माँ ने बिस्तर पकड़ लिया था तब वे एक दिन बोली थी हौले से- बहू रानी, जैसे तुझे मैंने सहेजा है, तू भी अपनी बहू की छाया बनकर रक्षा करना! अगर मेरी सासू मां मेरा ख्याल रखती तो मेरा जेठ मुझे कलंकित ना कर पाता! जब मैंने अपनी सासू माँ से इस ज्यादती के बारे में बताया था तब वे मेरे आगे अपने हाथ जोड़कर बोली थी कि बहू, इस घर की इज्जत रख ले. तू अब चुप्पी साध ले … तू बोलेगी तो तेरी गृहस्थी के साथ साथ तेरी जेठानी की गृहस्थी भी उजड़ जायेगी. पी जा बहू यह जहर! बचा ले घर की इज्जत! भाई को भाई का दुश्मन न बना. और मैं अपना दम घोंट कर वो गरल पी गयी थी. तब के बाद आज उगला है वो जहर तेरे सामने बहू!

इतना बोलकर चुप हो गयी थी मेरी सासू माँ और मैंने उनकी हथेली कसकर दबा दी थी मानो मैं उन्हें वचन दे रही थी- चिंता न करो सासू माँ … आपके पोते की बहू मेरे संरक्षण में रहेगी.

मेरी सासू माँ तो अब इस दुनिया में नहीं रही. पर मैं सोचती हूँ कि शादी से पहले मेरी जो सहेलियां रिश्ता पक्का होने पर मुझे चिढ़ाया करती थी कि जा सासू माँ की सेवा कर … तेरे पापा से ऐसा घर न ढूँढा गया जहाँ सास न हो!

अब उन्हें जाकर बताऊंगी कि सासू माँ तो मेरी देह के लिबास जैसी थी जिसने मेरी देह को ढक कर मुझे शर्मिन्दा होने से बचाये रखा. न केवल दुनिया के सामने बल्कि मेरी खुद की नज़रों में भी!

लेखिका की पिछली कहानी : मौसी की देवरानी का मचलता बदन

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